| Bihar Board 12th Hindi – बातचीत (बालकृष्ण भट्ट) |
लेखक परिचय :- बालकृष्ण भट्ट
➤ बालकृष्ण भट्ट (1844-1914) हिंदी साहित्य के भारतेन्दु युग के एक महान साहित्यकार और निबंधकार थे।
➤ उन्हें आधुनिक हिंदी गद्य का जनक माना जाता है। उन्होंने हिंदी भाषा के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उसे एक नया आयाम दिया।
➤ जन्म:- 3 जून 1844, इलाहाबाद (प्रयागराज), उत्तर प्रदेश।
➤ शिक्षा:- उन्होंने संस्कृत का अध्ययन किया और मिशन स्कूल में अध्यापन का कार्य भी किया।
➤ निधन- : 20 जुलाई 1914।
➤ बालकृष्ण भट्ट का साहित्यिक जीवन पत्रकारिता से शुरू हुआ। उन्होंने 1877 में ‘हिंदी प्रदीप’ नामक मासिक पत्रिका का संपादन किया। इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने सामाजिक, साहित्यिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने लगातार 33 वर्षों तक इस पत्रिका का संपादन किया।
उनके लेखन की प्रमुख विशेषताएँ:-
➤ निबंध- : भट्ट जी ने हजारों निबंध लिखे, जो विभिन्न विषयों पर आधारित थे। उनके निबंधों में हास्य, व्यंग्य, और गंभीर विचारों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। उनके निबंधों में ‘बातचीत’, ‘साहित्य जन-समूह के हृदय का विकास है’ और ‘चंद्रोदय’ प्रमुख हैं।
➤ नाटक:- उन्होंने कई नाटकों की भी रचना की, जिनमें ‘वेणुसंहार’, ‘बाल-विवाह’ और ‘पद्मावती’ शामिल हैं।
उपन्यास: उन्होंने ‘सौ अजान एक सुजान’ और ‘नूतन ब्रह्मचारी’ जैसे उपन्यास भी लिखे।
➤ भाषा:- उनकी भाषा सरल, स्वाभाविक और जन सामान्य के करीब थी। उन्होंने तत्सम शब्दों के साथ-साथ लोक प्रचलित शब्दों का भी प्रयोग किया, जिससे उनकी रचनाएँ अधिक प्रभावी और पठनीय बन गईं।
➤ बालकृष्ण भट्ट को ‘निबंधों का सम्राट’ भी कहा जाता है। उन्होंने हिंदी गद्य को एक नया कलेवर दिया और उसे आधुनिक स्वरूप प्रदान किया। उनके लेखन ने उस समय के समाज में जागरूकता लाने का काम किया और हिंदी साहित्य को समृद्ध बनाया।
बातचीत का सारांश
➤ “बातचीत” शीर्षक निबंध, हिंदी साहित्य के भारतेन्दु युग के प्रसिद्ध निबंधकार बालकृष्ण भट्ट द्वारा लिखा गया है। इस निबंध में, लेखक ने वाक शक्ति (बोलने की शक्ति) के महत्व और बातचीत के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझाया है।
➤ लेखक का मानना है कि मनुष्य को ईश्वर द्वारा दी गई अनेक शक्तियों में से वाक शक्ति सबसे महत्वपूर्ण है। यदि यह शक्ति न होती, तो पूरी दुनिया गूंगी और निष्क्रिय लगती। हम अपने सुख-दुख और विचारों को एक-दूसरे से साझा नहीं कर पाते। बातचीत ही एकमात्र ऐसा साधन है, जिससे हम अपने मन में जमा हुए मवाद (गंदगी) को भाप बनाकर बाहर निकाल सकते हैं और अपने चित्त को हल्का और साफ कर सकते हैं।
इस निबंध में, लेखक ने बातचीत के कई रूपों और नियमों पर प्रकाश डाला है:
➤ बातचीत के प्रकार:- लेखक के अनुसार, बातचीत का सबसे अच्छा तरीका दो व्यक्तियों के बीच होने वाली बातचीत है। जब दो लोग होते हैं, तो वे खुलकर अपने दिल की बात करते हैं। जैसे ही तीसरा व्यक्ति आता है, बातचीत का रुख बदल जाता है। तीन लोगों के बीच की बातचीत औपचारिकता बन जाती है, और चार से अधिक लोगों के बीच की बातचीत को ‘राम-रमौल’ कहा जाता है, जिसमें केवल हंसी-मजाक या निरर्थक बातें होती हैं।
➤ कलात्मक बातचीत (‘आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन’):- यूरोप के लोगों में बातचीत करने की एक विशेष कला है, जिसे ‘आर्ट ऑफ कन्वर्सेशन’ कहा जाता है। इस कला में ऐसी चतुराई होती है कि बातचीत सुनने वाले के लिए अत्यंत सुखद और मनोहर बन जाती है। इसे ‘सहृदय गोष्ठी’ भी कहते हैं।
➤ आत्म-वार्तालाप:- लेखक बातचीत का सबसे उत्तम तरीका स्वयं से बातचीत करना मानते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने अंदर ऐसी शक्ति पैदा करनी चाहिए जिससे हम खुद से ही बातचीत कर सकें। यह हमें अपने मन को नियंत्रित करने और बुरे विचारों को दूर रखने में मदद करता है।
➤ भिन्न-भिन्न लोगों की बातचीत:- लेखक ने विभिन्न प्रकार के लोगों की बातचीत का भी जिक्र किया है, जैसे दो बूढ़ों की बातचीत अक्सर जमाने की शिकायत पर होती है, दो युवा लड़कियों की बातचीत रस से भरी होती है, और पढ़े-लिखे लोगों की बातचीत शेक्सपियर और मिल्टन जैसे लेखकों पर होती है।
महत्वपूर्ण विचार
➤ बेन जॉनसन का मत:- बेन जॉनसन का मानना है कि ‘बोलने से ही मनुष्य का साक्षात्कार होता है’। जब तक कोई व्यक्ति बोलता नहीं, तब तक उसके गुण-दोष छिपे रहते हैं।
➤ एडिसन का मत:- एडिसन का मानना है कि ‘असली बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है’।
➤ लेखक ने इस निबंध में यह भी बताया है कि बातचीत से मन हल्का और स्वच्छ हो जाता है। यह व्यक्ति के जीवन को मजेदार बनाने के लिए उतनी ही आवश्यक है, जितनी खाने-पीने और चलने-फिरने की आवश्यकता होती है।
