| 2. विश्व जनसंख्या: वितरण, घनत्व और वृद्धि |
जनसंख्या के वितरण का अर्थ है कि पृथ्वी के धरातल पर लोग किस प्रकार फैले हुए हैं। यह वितरण बहुत असमान है। विश्व की लगभग 90% जनसंख्या केवल 10% भूमि पर निवास करती है, जबकि बाकी 90% भूमि पर बहुत कम लोग रहते हैं। इस असमानता के आधार पर, जनसंख्या वितरण के प्रतिरूपों को मोटे तौर पर दो मुख्य भागों में बांटा जा सकता है: सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र और विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र।
जनसंख्या के वितरण के मुख्य प्रतिरूप
1.सघन जनसंख्या वाले क्षेत्र (High-Density Areas):- ये वे क्षेत्र हैं जहाँ जनसंख्या का घनत्व बहुत अधिक है। ये क्षेत्र अक्सर अनुकूल भौगोलिक और आर्थिक कारकों के कारण लोगों को आकर्षित करते हैं।
उदाहरण:
पूर्वी और दक्षिणी एशिया:– यहाँ उपजाऊ मैदान (जैसे गंगा का मैदान), अनुकूल
जलवायु और कृषि के लिए पर्याप्त जल की उपलब्धता है।
यूरोप: – औद्योगीकरण और नगरीकरण के कारण यहाँ बड़ी संख्या में लोग रहते हैं।
उत्तर-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका:– यह क्षेत्र भी औद्योगीकरण और शहरी विकास के कारण अत्यधिक सघन आबादी वाला है।
- विरल जनसंख्या वाले क्षेत्र (Sparsely Populated Areas):- ये वे क्षेत्र हैं जहाँ जनसंख्या का घनत्व बहुत कम है। यहाँ की परिस्थितियाँ मानव निवास के लिए प्रतिकूल होती हैं।
उदाहरण:–
ध्रुवीय क्षेत्र:– अत्यधिक ठंड और कठोर जलवायु के कारण (जैसे अंटार्कटिका, आर्कटिक)।
गर्म रेगिस्तान:– पानी की कमी और अत्यधिक गर्मी के कारण (जैसे सहारा रेगिस्तान)।
ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र:– दुर्गम भू-आकृतियों और खेती की कमी के कारण (जैसे हिमालय)।
भूमध्यरेखीय वन:– सघन वनस्पति, आर्द्र जलवायु और बीमारियों के कारण।
जनसंख्या वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
जनसंख्या के वितरण को कई कारक प्रभावित करते हैं, जिन्हें मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
भौगोलिक कारक:– जल की उपलब्धता, भू-आकृति (मैदानों में अधिक लोग रहते हैं), जलवायु (मध्यम जलवायु पसंद की जाती है) और मृदाएँ (उपजाऊ मृदा कृषि के लिए महत्वपूर्ण है)।
आर्थिक कारक:– खनिज भंडार (जो रोजगार देते हैं), नगरीकरण (शहरों में रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएँ अधिक हैं) और औद्योगीकरण।
सामाजिक और सांस्कृतिक कारक:– धार्मिक या सांस्कृतिक महत्व वाले स्थान और राजनीतिक स्थिरता वाले क्षेत्र लोगों को आकर्षित करते हैं।
विश्व जनसंख्या का घनत्व (World Population Density)
जनसंख्या घनत्व प्रति इकाई क्षेत्र में रहने वाले लोगों की संख्या को दर्शाता है। यह किसी क्षेत्र की कुल जनसंख्या को उसके कुल क्षेत्रफल से विभाजित करके निकाला जाता है।
जनसंख्या घनत्व की गणना
जनसंख्या घनत्व की गणना का सूत्र (Formula) है:–
जनसंख्या घनत्व = “कुल जनसंख्या” /“कुल क्षेत्रफल ”
जनसंख्या घनत्व के प्रकार :-
जनसंख्या घनत्व को समझने के लिए विभिन्न प्रकारों का उपयोग किया जाता है:
गणितीय घनत्व (Arithmetic Density):- यह सबसे सामान्य प्रकार है, जिसमें कुल जनसंख्या को कुल क्षेत्रफल से विभाजित किया जाता है।
कायिक घनत्व (Physiological Density): – यह कुल जनसंख्या को केवल कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल से विभाजित करता है। यह किसी क्षेत्र की कृषि भूमि पर जनसंख्या के दबाव को बेहतर ढंग से दिखाता है।
कृषि घनत्व (Agricultural Density):- यह कृषि कार्य में संलग्न जनसंख्या को कुल कृषि योग्य भूमि के क्षेत्रफल से विभाजित करता है।
विश्व में जनसंख्या घनत्व के प्रतिरूप:-
विश्व में जनसंख्या घनत्व भी असमान है, जिसे तीन मुख्य श्रेणियों में बांटा जा सकता है:
उच्च घनत्व वाले क्षेत्र (High-Density Areas):- यहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर में 200 से अधिक लोग रहते हैं।
उदाहरण:– दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया (भारत, बांग्लादेश), यूरोप का उत्तर-पश्चिमी भाग, और उत्तर-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका। ये क्षेत्र आमतौर पर उपजाऊ भूमि, अनुकूल जलवायु, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण घनी आबादी वाले हैं।
मध्यम घनत्व वाले क्षेत्र (Medium-Density Areas):- यहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर में 11 से 50 लोग रहते हैं।
उदाहरण:– संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस, ब्राज़ील और कनाडा के कुछ हिस्से।
निम्न घनत्व वाले क्षेत्र (Low-Density Areas):- यहाँ प्रति वर्ग किलोमीटर में 1 व्यक्ति से भी कम रहते हैं।
उदाहरण: ध्रुवीय क्षेत्र, गर्म और ठंडे रेगिस्तान, और भूमध्यरेखीय वन, जहाँ कठोर जलवायु और प्रतिकूल परिस्थितियाँ होती हैं।
. जनसंख्या वृद्धि (Population Growth)
जनसंख्या वृद्धि का अर्थ है किसी विशेष क्षेत्र में, एक निश्चित समय के दौरान, लोगों की संख्या में होने वाली वृद्धि। इसे आमतौर पर जन्म दर और मृत्यु दर के बीच के अंतर के आधार पर मापा जाता है। जब जन्म दर मृत्यु दर से अधिक होती है, तो जनसंख्या बढ़ती है।
जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण:
मृत्यु दर में कमी:– चिकित्सा सुविधाओं, स्वच्छता और पोषण में सुधार के कारण मृत्यु दर में कमी आई है, जिससे लोगों का जीवनकाल बढ़ा है।
निरक्षरता और जागरूकता की कमी:– अशिक्षित लोगों में परिवार नियोजन के तरीकों और छोटे परिवार के लाभों के प्रति जागरूकता कम होती है।
कम उम्र में विवाह:– कम उम्र में विवाह होने से बच्चों की संख्या बढ़ने की संभावना अधिक होती है।
गरीबी और सामाजिक दबाव:- कुछ समाजों में ज्यादा बच्चे पैदा करना बुढ़ापे में सहारा और आर्थिक मदद का जरिया माना जाता है।
अवैध प्रवास:– एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के प्रवास से भी जनसंख्या में वृद्धि होती है।
धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं:– कुछ धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी अधिक बच्चों को जन्म देने के लिए प्रोत्साहित करती हैं।
जनसंख्या वृद्धि के दुष्परिणाम:
संसाधनों पर दबाव:– बढ़ती जनसंख्या के कारण भोजन, पानी, आवास, और प्राकृतिक संसाधनों पर भारी दबाव पड़ता है।
पर्यावरणीय समस्याएं:– वनों की कटाई, प्रदूषण और अन्य पर्यावरणीय समस्याएं जनसंख्या वृद्धि के कारण बढ़ती हैं।
बेरोजगारी और गरीबी:– बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में रोजगार के अवसर उपलब्ध नहीं होते, जिससे बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती है।
स्वास्थ्य और शिक्षा सेवाओं पर दबाव:– स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं पर भी दबाव बढ़ जाता है, जिससे उनकी गुणवत्ता प्रभावित होती है।
शहरीकरण और भीड़भाड़:– लोग बेहतर अवसरों की तलाश में शहरों की ओर पलायन करते हैं, जिससे शहरों में भीड़भाड़ और अव्यवस्था बढ़ती है।
जनसंख्या नियंत्रण के उपाय:
शिक्षा और जागरूकता:– लोगों को परिवार नियोजन के लाभों और छोटे परिवार के महत्व के बारे में शिक्षित करना।
विवाह की उम्र बढ़ाना:– विवाह की कानूनी उम्र बढ़ाकर जन्म दर को नियंत्रित किया जा सकता है।
परिवार नियोजन के तरीकों का उपयोग:– आधुनिक गर्भनिरोधक और परिवार नियोजन के तरीकों को बढ़ावा देना।
महिलाओं का सशक्तिकरण:– महिलाओं को शिक्षित और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना, जिससे वे परिवार संबंधी निर्णय ले सकें।
सरकार की नीतियां:– जनसंख्या नियंत्रण के लिए सरकारी नीतियों और योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करना।
बच्चे गोद लेने को प्रोत्साहन:– अनाथ बच्चों को गोद लेने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करना।
वैश्विक आंकड़े:–
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 2022 में दुनिया की आबादी लगभग 8 अरब तक पहुंच गई।
2030 तक इसके 8.5 अरब, 2050 तक 9.7 अरब और 2100 तक 10.9 अरब तक पहुंचने का अनुमान है।
भारत और चीन दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाले देश हैं। जुलाई 2023 तक, भारत की आबादी चीन से अधिक हो गई है।
जनसंख्या परिवर्तन के घटक (Components of population change)
जनसंख्या परिवर्तन के तीन मुख्य घटक हैं: जन्म दर, मृत्यु दर, और प्रवास। ये तीनों कारक मिलकर किसी क्षेत्र की जनसंख्या में वृद्धि, कमी या स्थिरता को निर्धारित करते हैं।
- जन्म दर (Birth Rate)
जन्म दर का अर्थ है एक वर्ष में प्रति 1000 व्यक्तियों पर जीवित जन्मे बच्चों की संख्या। यह जनसंख्या में वृद्धि का सबसे प्रमुख घटक है। जब जन्म दर अधिक होती है, तो जनसंख्या बढ़ती है। इसे कई कारक प्रभावित करते हैं, जैसे:
➤ शिक्षा का स्तर।
➤ परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता।
➤ सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएँ।
➤ महिलाओं की सामाजिक स्थिति।
- मृत्यु दर (Death Rate)
मृत्यु दर का अर्थ है एक वर्ष में प्रति 1000 व्यक्तियों पर मरने वाले लोगों की संख्या। मृत्यु दर में कमी जनसंख्या वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देती है। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं, स्वच्छता और पोषण के कारण मृत्यु दर में कमी आई है।
➤ जब जन्म दर, मृत्यु दर से अधिक होती है, तो जनसंख्या बढ़ती है।
➤ जब मृत्यु दर, जन्म दर से अधिक होती है, तो जनसंख्या घटती है।
3. प्रवास (Migration)
प्रवास का अर्थ है लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाना। यह जनसंख्या परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण घटक है, जो जनसंख्या के आकार के साथ-साथ उसके वितरण को भी प्रभावित करता है।
आप्रवास (Immigration):- जब लोग किसी नए क्षेत्र में आते हैं। इससे उस क्षेत्र की जनसंख्या बढ़ती है।
उत्प्रवास (Emigration):- जब लोग किसी क्षेत्र को छोड़कर जाते हैं। इससे उस क्षेत्र की जनसंख्या घटती है।
प्रवास दो प्रकार का हो सकता है:
आंतरिक प्रवास:– एक ही देश के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान पर लोगों का आना-जाना।
अंतर्राष्ट्रीय प्रवास:– एक देश से दूसरे देश में लोगों का आना-जाना।
ये तीनों घटक मिलकर किसी भी क्षेत्र की कुल जनसंख्या को निर्धारित करते हैं।
जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियाँ (Trends of population growth)
जनसंख्या वृद्धि की प्रवृत्तियाँ (Trends of population growth) विश्व स्तर पर और व्यक्तिगत देशों में अलग-अलग हैं। ऐतिहासिक रूप से, जनसंख्या वृद्धि धीमी थी, लेकिन 18वीं शताब्दी में औद्योगिक क्रांति और 20वीं शताब्दी में चिकित्सा और तकनीकी प्रगति के कारण इसमें तेजी से उछाल आया।
ऐतिहासिक प्रवृत्तियाँ
धीमी वृद्धि (प्राचीन काल से 18वीं सदी तक):– इस अवधि में, जनसंख्या वृद्धि बहुत धीमी थी क्योंकि उच्च जन्म दर के साथ-साथ उच्च मृत्यु दर भी थी, जो बीमारी, अकाल और युद्ध के कारण होती थी।
तीव्र वृद्धि (18वीं सदी से मध्य 20वीं सदी तक):– औद्योगिक क्रांति के साथ, कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई, स्वच्छता में सुधार हुआ और चिकित्सा विज्ञान में प्रगति हुई। इसने मृत्यु दर को काफी कम कर दिया, जबकि जन्म दर उच्च बनी रही, जिससे जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई।
शिखर पर पहुँचने के बाद गिरावट (मध्य 20वीं सदी से वर्तमान तक):– 1960 के दशक में वैश्विक जनसंख्या वृद्धि दर अपने चरम पर थी, लेकिन उसके बाद से यह धीरे-धीरे कम हो रही है। इसका मुख्य कारण शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं और परिवार नियोजन के प्रति जागरूकता बढ़ने से जन्म दर में कमी आना है।
वर्तमान और भविष्य की प्रवृत्तियाँ
विकासशील देशों में वृद्धि जारी:– उप-सहारा अफ्रीका जैसे कुछ विकासशील क्षेत्रों में जनसंख्या अभी भी तेजी से बढ़ रही है, क्योंकि वहाँ जन्म दर अभी भी उच्च है, और मृत्यु दर में कमी आई है।
विकसित देशों में धीमी या नकारात्मक वृद्धि:– यूरोप, जापान और कुछ अन्य विकसित देशों में जन्म दर बहुत कम है, जिससे वहाँ की जनसंख्या स्थिर है या घट रही है।
जनसंख्या का बूढ़ा होना:– दुनिया भर में जीवन प्रत्याशा बढ़ने और जन्म दर कम होने के कारण बुजुर्ग आबादी का अनुपात बढ़ रहा है।
शहरीकरण:– दुनिया की अधिकांश आबादी शहरों की ओर प्रवास कर रही है। 2050 तक, अनुमान है कि दुनिया की लगभग 68% आबादी शहरी क्षेत्रों में रहेगी।
पीक जनसंख्या (Peak population):- संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वैश्विक जनसंख्या 2080 के दशक के मध्य में लगभग 10.3 अरब तक पहुँचकर स्थिर हो जाएगी, और उसके बाद इसमें गिरावट आ सकती है।
भारत और चीन:– भारत अब दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश है। हालांकि, भारत और चीन दोनों की जनसंख्या वृद्धि दर धीमी हो रही है।
ये प्रवृत्तियाँ सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय चुनौतियों को जन्म देती हैं, जिन पर विश्व भर में ध्यान दिया जा रहा है।
जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत (Demographic Transition Theory )
जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत (Demographic Transition Theory) एक मॉडल है जो यह बताता है कि किसी देश की जनसंख्या समय के साथ कैसे बदलती है। यह सिद्धांत इस बात की व्याख्या करता है कि जैसे-जैसे कोई समाज ग्रामीण और कृषि-प्रधान अवस्था से विकसित होकर शहरी और औद्योगिक समाज बनता है, उसकी जन्म दर (birth rate) और मृत्यु दर (death rate) में क्या बदलाव आते हैं। यह सिद्धांत मुख्य रूप से जन्म और मृत्यु दर के बीच के अंतर पर आधारित है, जो अंततः जनसंख्या वृद्धि की दर को प्रभावित करता है।
यह सिद्धांत आमतौर पर चार या पाँच चरणों में समझाया जाता है।
चरण 1: उच्च स्थिर अवस्था (High Stationary Stage)
यह चरण औद्योगिक-पूर्व समाजों का प्रतिनिधित्व करता है।
उच्च जन्म दर :- इस चरण में जन्म दर बहुत अधिक होती है क्योंकि परिवार नियोजन के साधन उपलब्ध नहीं होते हैं। बच्चे आर्थिक संपत्ति माने जाते हैं जो खेती और अन्य कामों में मदद करते हैं।
उच्च मृत्यु दर:– मृत्यु दर भी बहुत अधिक होती है क्योंकि चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवाएँ सीमित होती हैं। अकाल, बीमारी और महामारियाँ आम होती हैं।
जनसंख्या वृद्धि:– उच्च जन्म दर और उच्च मृत्यु दर एक-दूसरे को संतुलित करती हैं, जिससे जनसंख्या वृद्धि बहुत धीमी या लगभग स्थिर होती है।
चरण 2: प्रारंभिक विस्तार अवस्था (Early Expanding Stage)
यह चरण तब शुरू होता है जब समाज औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ता है।
मृत्यु दर में तेजी से गिरावट:– सार्वजनिक स्वास्थ्य, स्वच्छता, पोषण और चिकित्सा विज्ञान में सुधार के कारण मृत्यु दर में तेजी से कमी आती है।
जन्म दर उच्च बनी रहती है:– जन्म दर अभी भी अधिक बनी रहती है क्योंकि सामाजिक और सांस्कृतिक परंपराओं में तुरंत बदलाव नहीं आता है।
जनसंख्या वृद्धि:– मृत्यु दर में गिरावट और उच्च जन्म दर के कारण इस चरण में जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि होती है।
चरण 3: विलंबित विस्तार अवस्था (Late Expanding Stage)
यह चरण समाज के अधिक औद्योगिक और शहरीकृत होने पर शुरू होता है।
जन्म दर में गिरावट :– शहरीकरण, शिक्षा का प्रसार, महिलाओं की सामाजिक स्थिति में सुधार और परिवार नियोजन के साधनों की उपलब्धता के कारण जन्म दर में गिरावट आनी शुरू हो जाती है।
मृत्यु दर कम बनी रहती है :– मृत्यु दर पहले ही कम हो चुकी होती है और कम स्तर पर बनी रहती है।
जनसंख्या वृद्धि :– जन्म दर और मृत्यु दर के बीच का अंतर कम होने लगता है, जिससे जनसंख्या वृद्धि धीमी हो जाती है।
चरण 4: निम्न स्थिर अवस्था (Low Stationary Stage)
यह चरण विकसित समाजों का प्रतिनिधित्व करता है।
निम्न जन्म दर :– जन्म दर बहुत कम हो जाती है, जो अक्सर प्रतिस्थापन स्तर (replacement level) के करीब या उससे भी नीचे होती है।
निम्न मृत्यु दर: मृत्यु दर भी बहुत कम होती है, जो जीवन प्रत्याशा में वृद्धि को दर्शाती है।
जनसंख्या वृद्धि :– जन्म और मृत्यु दर दोनों कम होने के कारण जनसंख्या वृद्धि बहुत धीमी या लगभग स्थिर हो जाती है। कुछ मामलों में, जनसंख्या में गिरावट भी आ सकती है।
कुछ विद्वान एक पाँचवें चरण की भी बात करते हैं जहाँ जन्म दर मृत्यु दर से भी कम हो जाती है, जिससे जनसंख्या में वास्तविक गिरावट देखी जाती है (जैसे जापान और जर्मनी जैसे देशों में)।
यह सिद्धांत एक उपयोगी ढांचा प्रदान करता है जो देशों की जनसंख्या प्रवृत्तियों को समझने में मदद करता है।
