मानव भूगोल: प्रकृति एवं विषय क्षेत्र
भूगोल (Geography) :- भूगोल एक ऐसा विषय है जो पृथ्वी के धरातल, उसके भौतिक स्वरूपों, और मानव तथा पर्यावरण के बीच के संबंधों का अध्ययन करता है। यह शब्द दो ग्रीक शब्दों से मिलकर बना है:
‘Geo’ जिसका अर्थ है पृथ्वी (Earth)
‘Grapho’ जिसका अर्थ है वर्णन करना (To describe)
इसलिए, भूगोल का शाब्दिक अर्थ है “पृथ्वी का वर्णन”।
भूगोल का विषय क्षेत्र
भूगोल केवल स्थानों के नाम और मानचित्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बहुत व्यापक विषय है जो कई क्षेत्रों को कवर करता है। इसे मुख्य रूप से दो प्रमुख शाखाओं में बांटा गया है:-
A. भौतिक भूगोल (Physical Geography)
B. मानव भूगोल (Human Geography)
A.भौतिक भूगोल (Physical Geography) :- भौतिक भूगोल, भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जो पृथ्वी के प्राकृतिक तत्वों का अध्ययन करती है। यह पृथ्वी के धरातल पर मौजूद सभी प्राकृतिक घटनाओं और प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक विश्लेषण करता है, जो पृथ्वी को वर्तमान स्वरूप प्रदान करती हैं।
भौतिक भूगोल की मुख्य शाखाएँ
भौतिक भूगोल के अध्ययन को कई उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
भू-आकृति विज्ञान (Geomorphology):- यह पृथ्वी की सतह पर मौजूद भू-आकृतियों (जैसे पर्वत, पठार, मैदान, घाटियाँ) और उन प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है जो उन्हें बनाती हैं और बदलती हैं, जैसे अपरदन (erosion) और निक्षेपण (deposition)।
जलवायु विज्ञान (Climatology):- इस शाखा में मौसम, जलवायु, वायुमंडलीय घटनाओं, और उनके पैटर्न का अध्ययन किया जाता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि विभिन्न क्षेत्रों में जलवायु कैसी है और क्यों है।
समुद्र विज्ञान (Oceanography):- यह महासागरों, समुद्री जीवन, धाराओं, ज्वार-भाटा और समुद्री तलों की संरचना का अध्ययन करता है।
मृदा भूगोल (Soil Geography):- इस शाखा में मिट्टी के निर्माण, उसके प्रकार, वितरण और गुणों का अध्ययन किया जाता है।
जल विज्ञान (Hydrology):- यह पृथ्वी पर जल के वितरण, उसके संचलन और गुणों का अध्ययन करता है, जिसमें नदियाँ, झीलें और भूजल शामिल हैं।
B. मानव भूगोल (Human Geography) :- मानव भूगोल, भूगोल की एक प्रमुख शाखा है जो मानव और उसके पर्यावरण के बीच संबंधों का अध्ययन करती है। यह इस बात पर केंद्रित है कि मनुष्य अपने प्राकृतिक पर्यावरण के साथ कैसे अंतःक्रिया करता है और कैसे अपने सांस्कृतिक परिदृश्य का निर्माण करता है।
मानव भूगोल की परिभाषाएँ :- विभिन्न भूगोलवेत्ताओं ने मानव भूगोल को अलग-अलग दृष्टिकोणों से परिभाषित किया है:
फ्रेडरिक रेटजेल:– जर्मन भूगोलवेत्ता फ्रेडरिक रेटजेल ने मानव भूगोल को “मानव समाजों और पृथ्वी के धरातल के बीच संबंधों का संश्लेषित अध्ययन” बताया।
मानव भूगोल का जनक फ्रेडरिक रेटजेल को कहा जाता है।
एलन चर्चिल सैंपल:– रेटजेल की शिष्या सैंपल के अनुसार, “मानव भूगोल अस्थिर पृथ्वी और चंचल मानव के बीच परिवर्तनशील संबंधों का अध्ययन है।”
पॉल विडाल डी ला ब्लाश:– फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता ब्लाश ने मानव भूगोल को “पृथ्वी और मानव के बीच अंतर्संबंधों की एक नई अवधारणा” के रूप में परिभाषित किया।
मानव भूगोल का विषय क्षेत्र
मानव भूगोल के अध्ययन का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसे कई उप-क्षेत्रों में विभाजित किया गया है:
जनसंख्या भूगोल:– जनसंख्या का वितरण, घनत्व और वृद्धि।
आर्थिक भूगोल:– कृषि, उद्योग, व्यापार जैसे आर्थिक क्रियाकलाप।
नगरीय भूगोल:– शहरों का विकास और उनकी समस्याएँ।
सांस्कृतिक भूगोल:– मानव की संस्कृति, धर्म और भाषा का अध्ययन।
राजनीतिक भूगोल:– राज्यों, सीमाओं और राजनीतिक संबंधों का अध्ययन।
मानव भूगोल की प्रकृति
मानव भूगोल की प्रकृति को समझने के लिए इसकी मुख्य विचारधाराओं को समझना आवश्यक है:
निश्चयवाद (Determinism)
संभववाद (Possibilist)
नव-निश्चयवाद (Neo-Determinism)
निश्चयवाद (Determinism):-
निश्चयवाद, जिसे पर्यावरणीय निश्चयवाद भी कहते हैं, मानव भूगोल की एक विचारधारा है जो यह मानती है कि मनुष्य के व्यवहार, समाज और संस्कृति पर प्राकृतिक पर्यावरण का पूर्ण नियंत्रण होता है। इस सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य एक निष्क्रिय प्राणी है, जिसके कार्य और जीवनशैली को उसके आसपास की जलवायु, भूमि की स्थलाकृति और प्राकृतिक संसाधनों द्वारा निर्धारित किया जाता है।
मुख्य अवधारणाएँ :-
पर्यावरण ही सब कुछ है:– यह विचारधारा मानती है कि प्राकृतिक पर्यावरण ही मनुष्य की शारीरिक बनावट, उसके भोजन, पहनावे और यहाँ तक कि उसके सामाजिक-आर्थिक विकास का मुख्य कारण है।
मनुष्य निष्क्रिय है:– इसके अनुसार, मनुष्य के पास प्रकृति के नियमों को बदलने की शक्ति नहीं है। वह केवल उन परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढाल सकता है जो प्रकृति ने उसके लिए बनाई हैं।
प्रमुख समर्थक
इस विचारधारा को जर्मनी के प्रसिद्ध भूगोलवेत्ता फ्रेडरिक रेटजेल और उनकी अमेरिकी शिष्या एलन चर्चिल सैंपल ने बढ़ावा दिया। रेटजेल की पुस्तक ‘एन्थ्रोपोज्योग्राफी’ में इस विचार को प्रमुखता से दर्शाया गया था।
उदाहरण :-
ठंडी जलवायु:– ठंडे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का शरीर मोटा और छोटा होता है, जिससे वे गर्मी बनाए रख सकें।
रेगिस्तानी क्षेत्र:– रेगिस्तानों में रहने वाले लोग पानी की कमी के कारण घुमंतू जीवन जीते हैं और उनकी अर्थव्यवस्था पशुपालन पर आधारित होती है।
पहाड़ी क्षेत्र:– पहाड़ी इलाकों में खेती करना मुश्किल होता है, जिससे यहाँ के लोग सीढ़ीनुमा खेती करते हैं और उनका जीवन कठिन होता है।
इस विचारधारा की आलोचना यह कहकर की जाती है कि यह मनुष्य की बुद्धि और उसकी रचनात्मक क्षमता को अनदेखा करती है। इसी के विरोध में संभववाद और बाद में नव-निश्चयवाद जैसी विचारधाराएँ विकसित हुईं।
संभववाद (Possibilist):-
संभववाद, मानव भूगोल की एक विचारधारा है जो मानती है कि प्राकृतिक पर्यावरण मनुष्य के लिए सिर्फ संभावनाएँ (possibilities) प्रस्तुत करता है, और मनुष्य अपनी इच्छा और बुद्धि के अनुसार उन संभावनाओं का उपयोग करता है। इस सिद्धांत के अनुसार, मनुष्य एक निष्क्रिय प्राणी नहीं है बल्कि एक सक्रिय कारक है जो अपने पर्यावरण को बदलने और ढालने की क्षमता रखता है।
मुख्य अवधारणाएँ
मानव एक सक्रिय एजेंट:– निश्चयवाद के विपरीत, संभववाद मानव को पर्यावरण के प्रभाव से मुक्त मानता है। मनुष्य अपनी तकनीकी और सांस्कृतिक प्रगति का उपयोग करके प्रकृति की सीमाओं को पार कर सकता है।
प्रकृति एक सलाहकार:– इस विचारधारा में प्रकृति को एक “सलाहकार” के रूप में देखा जाता है, न कि “नियंत्रक” के रूप में। प्रकृति मानव को विकल्प देती है, और मानव अपनी ज़रूरतों के हिसाब से उन विकल्पों का चयन करता है।
प्रमुख समर्थक
संभववाद की अवधारणा मुख्य रूप से फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता पॉल विडाल डी ला ब्लाश के विचारों से विकसित हुई। उनके शिष्य जीन ब्रून्स ने भी इस विचारधारा को आगे बढ़ाया।
उदाहरण :-
पहाड़ी क्षेत्रों में सीढ़ीदार खेत:– पहाड़ों की खड़ी ढलानों पर खेती करना प्राकृतिक रूप से मुश्किल है, लेकिन मनुष्य ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके सीढ़ीदार खेत बनाए और खेती को संभव बनाया।
रेगिस्तान में नहरों का निर्माण:– रेगिस्तानी क्षेत्रों में पानी की कमी होती है, लेकिन मनुष्य ने नहरें बनाकर सिंचाई की व्यवस्था की और कृषि को संभव बनाया।
वातानुकूलित (AC) कमरों का उपयोग:– अत्यधिक गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में भी मनुष्य ने अपनी तकनीक से वातानुकूलित कमरे बनाकर आरामदायक जीवन सुनिश्चित किया है।
इस विचारधारा ने मानव और प्रकृति के संबंधों में मनुष्य की केंद्रीय भूमिका पर ज़ोर दिया। हालाँकि, बाद में इसकी आलोचना भी हुई कि यह पर्यावरण पर मानव के नकारात्मक प्रभावों को अनदेखा करती है। इसी के बाद नव-निश्चयवाद की अवधारणा सामने आई।
नव-निश्चयवाद (Neo-Determinism) :-
नव-निश्चयवाद, जिसे ‘रुको और जाओ’ (Stop and Go) निश्चयवाद भी कहा जाता है, मानव भूगोल की एक आधुनिक विचारधारा है। इस विचारधारा को अमेरिकी भूगोलवेत्ता ग्रिफिथ टेलर ने प्रस्तुत किया था। यह निश्चयवाद और संभववाद के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करती है, और मानती है कि न तो प्रकृति सब कुछ नियंत्रित करती है और न ही मानव पूर्ण रूप से स्वतंत्र है।
नव-निश्चयवाद की मुख्य अवधारणा:-
यह विचारधारा एक चौराहे पर खड़े ट्रैफिक पुलिस के समान है, जहाँ ट्रैफिक पुलिस यातायात को नियंत्रित करता है, लेकिन वह यातायात के प्रवाह को रोक भी नहीं सकता है और न ही उसे दिशा दे सकता है।
इसी प्रकार, नव-निश्चयवाद कहता है कि:-
प्रकृति की सीमाओं का सम्मान करें:– मानव को प्रकृति के नियमों का पालन करना चाहिए और उसके साथ सामंजस्य बिठाकर विकास करना चाहिए।
विकास की गति को नियंत्रित करें:– मनुष्य विकास की गति को तेज या धीमा कर सकता है, लेकिन वह प्रकृति की दिशा को बदल नहीं सकता।
पर्यावरण को नुकसान न पहुँचाएँ:– यदि मनुष्य प्रकृति की सीमा को लांघने का प्रयास करेगा, तो उसे पर्यावरणीय आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा और प्रदूषण का सामना करना पड़ेगा।
उदाहरण
सतत विकास (Sustainable Development):- नव-निश्चयवाद सतत विकास के विचार का समर्थन करता है, जिसका उद्देश्य पर्यावरण को नुकसान पहुँचाए बिना भविष्य की पीढ़ियों के लिए संसाधनों को सुरक्षित रखना है।
नदियों पर बाँध:– मनुष्य नदियों पर बाँध बनाकर बिजली पैदा कर सकता है और सिंचाई कर सकता है, लेकिन यदि वह प्रकृति की क्षमता से अधिक बाँध बनाता है, तो पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान पहुँचेगा और बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा।
इस प्रकार, नव-निश्चयवाद मानव को एक समझदार और जिम्मेदार प्राणी के रूप में देखता है जो अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करता है, लेकिन पर्यावरण के प्रति भी सचेत रहता है।
मानव भूगोल की मानवतावादी विचारधारा
मानव भूगोल की मानवतावादी विचारधारा 1970 के दशक में आई एक महत्वपूर्ण विचारधारा है, जो भूगोल में व्यक्तिगत मानव अनुभव और चेतना पर ध्यान केंद्रित करती है। यह विचारधारा मात्रात्मक क्रांति (Quantitative Revolution) के जवाब में विकसित हुई, जिसने भूगोल को बहुत अधिक सांख्यिकीय और अवैयक्तिक बना दिया था।
मुख्य अवधारणाएँ
मानव अनुभव को महत्व:– मानवतावादी विचारधारा इस बात पर ज़ोर देती है कि स्थानों और परिदृश्यों को केवल संख्यात्मक डेटा (जैसे जनसंख्या घनत्व या आर्थिक आँकड़े) से नहीं समझा जा सकता। इसके बजाय, यह लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों, भावनाओं, विश्वासों और उनके जीवन के अर्थ को समझने की कोशिश करती है।
अवलोकन के बजाय भागीदारी:– यह विचारधारा मानती है कि किसी स्थान को समझने के लिए उसमें रहने वाले लोगों के साथ जुड़ना और उनके दृष्टिकोण से दुनिया को देखना ज़रूरी है। यह केवल दूर से अवलोकन करने के बजाय, लोगों के अनुभवों को समझने के लिए ‘भागीदारी अवलोकन’ जैसी विधियों का उपयोग करती है।
मानवीय मूल्यों पर ध्यान:– मानवतावादी भूगोलवेत्ता मानवीय मूल्यों, नैतिकता, और सामाजिक न्याय जैसे विषयों को अध्ययन का केंद्र मानते हैं। उनका मानना है कि भूगोल का उद्देश्य केवल पृथ्वी का वर्णन करना नहीं, बल्कि मानव कल्याण और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना भी है।
प्रमुख समर्थक
यी-फू तुआन (Yi-Fu Tuan):- इन्हें मानवतावादी भूगोल का जनक माना जाता है। उन्होंने ‘टोपोफिलिया’ (Topophilia) की अवधारणा दी, जिसका अर्थ है किसी स्थान के प्रति भावनात्मक लगाव।
एडवर्ड रेलफ (Edward Relph):- इन्होंने ‘प्लेस’ (Place) की अवधारणा पर काम किया, जिसमें बताया गया कि ‘प्लेस’ सिर्फ एक भौतिक स्थान नहीं है, बल्कि उसमें मानवीय अर्थ और पहचान भी शामिल होती है।
उदाहरण
यदि कोई मानवतावादी भूगोलवेत्ता किसी शहर का अध्ययन कर रहा है, तो वह केवल जनसंख्या के आँकड़े या भूमि उपयोग के पैटर्न को नहीं देखेगा। इसके बजाय, वह यह समझने की कोशिश करेगा कि:-
➤ लोग अपने पड़ोस के बारे में कैसा महसूस करते हैं।
➤ सार्वजनिक स्थानों पर उनकी क्या यादें जुड़ी हैं।
➤ शहर में रहते हुए उन्हें किन चुनौतियों या खुशियों का सामना करना पड़ता है।
इस प्रकार, मानवतावादी विचारधारा ने मानव भूगोल को अधिक अर्थपूर्ण, नैतिक और प्रासंगिक बनाने में मदद की।
मानव भूगोल का इतिहास
मानव भूगोल का इतिहास काफी लंबा और जटिल रहा है, जो प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक विकसित हुआ है। इसका विकास मुख्यतः मानव और पर्यावरण के बीच बदलते संबंधों को समझने के प्रयास से जुड़ा है।
प्राचीन काल
प्राचीन सभ्यताओं में, भूगोल का अध्ययन मुख्य रूप से खोज, वर्णन और मानचित्रण पर केंद्रित था। यूनानी और रोमन विद्वानों, जैसे हेरोडोटस और स्ट्रैबो ने अपने यात्रा वृत्तांतों में विभिन्न संस्कृतियों, लोगों और उनके पर्यावरण के बीच संबंधों का वर्णन किया। इस युग में भूगोल को एक अलग विषय के रूप में नहीं देखा जाता था, बल्कि इसे इतिहास, खगोल विज्ञान और दर्शन के साथ जोड़कर पढ़ा जाता था।
मध्यकाल
मध्यकाल में, विशेषकर इस्लामी दुनिया में, भूगोल का विकास जारी रहा। अल-इदरीसी और इब्न-बतूता जैसे विद्वानों ने अपने यात्राओं के अनुभवों के आधार पर दुनिया के बारे में विस्तृत जानकारी दी, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के लोगों की जीवनशैली और संस्कृतियों का वर्णन था।
आधुनिक काल की शुरुआत (18वीं-19वीं शताब्दी)
इस काल में भूगोल एक व्यवस्थित और वैज्ञानिक विषय के रूप में उभरना शुरू हुआ।
फ्रेडरिक रेटजेल:– इन्हें आधुनिक मानव भूगोल का जनक माना जाता है। उनकी पुस्तक “एन्थ्रोपोज्योग्राफी” (Anthropogeography) ने मानव भूगोल को एक स्वतंत्र विषय के रूप में स्थापित किया। रेटजेल ने निश्चयवाद (Determinism) की विचारधारा का समर्थन किया, जिसमें उन्होंने तर्क दिया कि प्राकृतिक पर्यावरण मनुष्य के जीवन और संस्कृति को पूरी तरह से नियंत्रित करता है।
पॉल विडाल डी ला ब्लाश:– फ्रांसीसी भूगोलवेत्ता विडाल डी ला ब्लाश ने संभववाद (Possibilism) की विचारधारा दी, जो निश्चयवाद के विपरीत थी। उन्होंने यह विचार रखा कि प्रकृति मनुष्य के लिए केवल संभावनाएँ प्रस्तुत करती है, और मनुष्य अपनी बुद्धि और तकनीकी क्षमता से इन संभावनाओं का उपयोग करता है।
20वीं शताब्दी
20वीं शताब्दी में मानव भूगोल में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए:
नव-निश्चयवाद (Neo-Determinism):- ग्रिफिथ टेलर ने ‘रुको और जाओ’ (Stop and Go) निश्चयवाद की अवधारणा दी। यह निश्चयवाद और संभववाद के बीच एक मध्य मार्ग था, जो यह बताता है कि मानव को प्रकृति की सीमाओं का सम्मान करते हुए ही विकास करना चाहिए।
अन्य विचारधाराएँ:– इस शताब्दी में व्यवहारवादी भूगोल, कल्याणकारी भूगोल और मानवतावादी भूगोल जैसी कई नई विचारधाराएँ भी विकसित हुईं, जो मानव कल्याण, सामाजिक समानता और मानव अनुभव पर केंद्रित थीं।
मानव भूगोल का इतिहास हमें दिखाता है कि यह विषय समय के साथ कैसे विकसित हुआ है, और कैसे यह मानव और पृथ्वी के बीच जटिल और बदलते संबंधों को समझने का प्रयास करता रहा है।
