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12th Geography Population Composition study material || 12th Geography जनसंख्या संघटन

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3.जनसंख्या संघटन (Population Composition )

जनसंख्या संघटन, भूगोल का एक महत्वपूर्ण विषय है, जो किसी भी क्षेत्र की जनसंख्या की विशिष्ट विशेषताओं और संरचना का अध्ययन करता है। यह समझने में मदद करता है कि विभिन्न जनसांख्यिकीय कारक समाज के विकास और परिवर्तन को कैसे प्रभावित करते हैं।

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जनसंख्या संघटन के मुख्य घटक:

जनसंख्या संघटन के अध्ययन में निम्नलिखित पहलुओं को शामिल किया जाता है:

आयु संरचना (Age Structure)

लिंगानुपात (Sex Ratio)

साक्षरता दर (Literacy Rate)

ग्रामीण-नगरीय संघटन  (Rural-Urban Composition)

व्यावसायिक संरचना (Occupational Structure)

आयु संरचना (Age Structure)

आयु संरचना (Age Structure) जनसंख्या संघटन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह किसी भी क्षेत्र की कुल जनसंख्या को विभिन्न आयु समूहों में विभाजित करके उनकी संख्या का अध्ययन करता है। यह संरचना यह समझने में मदद करती है कि समाज में कितनी युवा, वयस्क और वृद्ध जनसंख्या है।

आयु संरचना के प्रमुख समूह

जनसांख्यिकी में, जनसंख्या को सामान्यतः तीन मुख्य आयु समूहों में बांटा जाता है:

बाल आयु वर्ग (Children Age Group):-  यह 0 से 14 वर्ष के आयु वर्ग को दर्शाता है। यह समूह आर्थिक रूप से अनुत्पादक होता है और कार्यशील जनसंख्या पर आश्रित रहता है। इस वर्ग में जन्म दर का अध्ययन किया जाता है।

कार्यशील आयु वर्ग (Working Age Group):- इस समूह में 15 से 59 वर्ष के लोग शामिल होते हैं। यह जनसंख्या का सबसे उत्पादक और गतिशील हिस्सा होता है, जो आर्थिक गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेता है और देश के विकास में योगदान देता है। इस समूह का बड़ा होना देश के लिए “जनांकिकीय लाभांश” (Demographic Dividend) का अवसर पैदा करता है।

वृद्ध आयु वर्ग (Elderly Age Group):- इसमें 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोग शामिल होते हैं। यह समूह भी आश्रित जनसंख्या का हिस्सा होता है, जिसे स्वास्थ्य सेवाओं और देखभाल की अधिक आवश्यकता होती है। इस वर्ग की जनसंख्या में वृद्धि निम्न मृत्यु दर और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं का संकेत देती है।

आयु संरचना का महत्व

आर्थिक विकास: एक बड़ी कार्यशील जनसंख्या देश के आर्थिक विकास को गति देती है।

सामाजिक नीतियाँ: आयु संरचना के आधार पर सरकारें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित नीतियां बनाती हैं।

जनांकिकीय लाभांश (Demographic Dividend):- युवा जनसंख्या का अधिक अनुपात देश को आर्थिक लाभ प्रदान कर सकता है, यदि इस जनसंख्या को सही शिक्षा और रोजगार के अवसर मिलें।

लिंगानुपात (Sex Ratio)

लिंगानुपात (Sex Ratio) का अर्थ है किसी जनसंख्या में पुरुषों और महिलाओं की संख्या के बीच का अनुपात। इसे आमतौर पर प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या के रूप में व्यक्त किया जाता है।

लिंगानुपात की गणना

अधिकांश देशों में, लिंगानुपात की गणना इस सूत्र से की जाती है:

लिंगानुपात = (“महिलाओं की संख्या/पुरुषों की संख्या) × 1000

उदाहरण के लिए, यदि किसी क्षेत्र में 1000 पुरुष और 950 महिलाएं हैं, तो लिंगानुपात 950 होगा।

लिंगानुपात के प्रकार

अनुकूल लिंगानुपात (Favorable Sex Ratio):- जब प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1000 से अधिक होती है। यह समाज में महिलाओं के लिए बेहतर स्थिति और उच्च सामाजिक-आर्थिक स्तर को दर्शाता है।

प्रतिकूल लिंगानुपात (Unfavorable Sex Ratio):- जब प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1000 से कम होती है। यह समाज में लैंगिक असमानता, कन्या भ्रूण हत्या और भेदभाव जैसी समस्याओं का संकेत है।

लिंगानुपात को प्रभावित करने वाले कारक

लिंगानुपात को कई कारक प्रभावित करते हैं:

जन्म के समय अनुपात: प्राकृतिक रूप से, लड़कों का जन्म लड़कियों की तुलना में थोड़ा अधिक होता है।

मृत्यु दर:– विभिन्न आयु वर्गों में पुरुषों और महिलाओं की मृत्यु दर में अंतर।

प्रवास: काम या अन्य कारणों से पुरुषों या महिलाओं का एक स्थान से दूसरे स्थान पर प्रवास।

सामाजिक-आर्थिक कारक:– लिंग आधारित भेदभाव, कन्या भ्रूण हत्या और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तक महिलाओं की सीमित पहुँच।

लिंगानुपात का महत्व

लिंगानुपात का अध्ययन समाज की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। एक असंतुलित लिंगानुपात से सामाजिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जैसे:

विवाह के लिए योग्य साथी की कमी।

महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में वृद्धि।

मानव तस्करी और वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराइयों में वृद्धि।

साक्षरता दर (Literacy Rate)

साक्षरता दर (Literacy Rate) जनसंख्या संघटन का एक महत्वपूर्ण सूचक है जो किसी क्षेत्र की जनसंख्या में शैक्षिक स्तर को दर्शाता है। यह किसी निश्चित आयु से अधिक के उन व्यक्तियों के प्रतिशत को दिखाता है जो पढ़, लिख और समझ सकते हैं।

साक्षर व्यक्ति की परिभाषा

भारत की जनगणना के अनुसार, एक व्यक्ति को साक्षर माना जाता है यदि:

वह 7 वर्ष या उससे अधिक आयु का हो।

वह किसी भी भाषा में समझ के साथ पढ़ और लिख सकता हो।

सिर्फ पढ़ सकने वाला, लेकिन लिख नहीं सकने वाला व्यक्ति साक्षर नहीं माना जाता है।

साक्षरता दर का महत्व

साक्षरता दर किसी भी देश के सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इसका सीधा संबंध निम्नलिखित बातों से होता है:-

आर्थिक विकास: उच्च साक्षरता दर एक कुशल और उत्पादक कार्यबल को बढ़ावा देती है, जिससे आर्थिक वृद्धि होती है।

सामाजिक सशक्तिकरण:– शिक्षा व्यक्ति को सशक्त बनाती है, जिससे वे अपने स्वास्थ्य, परिवार नियोजन और अन्य सामाजिक निर्णयों के बारे में बेहतर निर्णय ले पाते हैं।

स्वास्थ्य और कल्याण: साक्षरता का सीधा संबंध बेहतर स्वास्थ्य परिणामों, कम शिशु मृत्यु दर और बेहतर जीवन स्तर से होता है।

लैंगिक समानता:– महिला साक्षरता दर में वृद्धि से समाज में लैंगिक असमानता कम होती है।

भारत में साक्षरता की स्थिति

2011 की जनगणना के अनुसार  भारत की कुल साक्षरता दर 74.04% थी। इसमें पुरुष साक्षरता दर 82.14% और महिला साक्षरता दर 65.46% थी।

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) की रिपोर्ट 2021 के अनुसार भारत की कुल साक्षरता दर लगभग 77.7% हो गई है, जिसमें पुरुष साक्षरता दर 84.7% और महिला साक्षरता दर 70.3% है।

ग्रामीण-नगरीय संघटन (Rural-Urban Composition)

ग्रामीण-नगरीय संघटन का अर्थ है किसी देश की कुल जनसंख्या का ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में विभाजन। यह किसी भी समाज के विकास, जीवनशैली और आर्थिक गतिविधियों को समझने का एक महत्वपूर्ण तरीका है।

ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों का वर्गीकरण

ग्रामीण और नगरीय क्षेत्रों को वर्गीकृत करने के लिए विभिन्न देशों में अलग-अलग मापदंड अपनाए जाते हैं। भारत में, वर्गीकरण के मुख्य आधार इस प्रकार हैं:

नगरीय क्षेत्र (Urban Area)

न्यूनतम जनसंख्या 5,000 व्यक्ति होनी चाहिए।

जनसंख्या घनत्व प्रति वर्ग किमी 400 व्यक्ति से अधिक हो।

कार्यशील जनसंख्या का 75% से अधिक भाग गैर-कृषि कार्यों (जैसे उद्योग, व्यापार, सेवाएं) में संलग्न हो।

एक नगरपालिका, नगर निगम, छावनी बोर्ड, या अधिसूचित नगर क्षेत्र समिति हो।

ग्रामीण क्षेत्र (Rural Area)

ऐसे क्षेत्र जो नगरीय क्षेत्रों के मापदंडों को पूरा नहीं करते।

यहां की अधिकांश जनसंख्या कृषि और प्राथमिक गतिविधियों में संलग्न होती है।

जनसंख्या घनत्व और सुविधाओं का स्तर नगरीय क्षेत्रों की तुलना में कम होता है।

ग्रामीण और नगरीय जीवन में अंतर

विशेषता ग्रामीण क्षेत्र नगरीय क्षेत्र
जनसंख्या घनत्व कम बहुत अधिक
आवास कच्चे-पक्के मकान, कम भीड़भाड़ पक्के मकान, बहुमंजिला इमारतें, अधिक भीड़भाड़
मुख्य व्यवसाय कृषि, पशुपालन, मत्स्य पालन (प्राथमिक गतिविधियाँ) उद्योग, व्यापार, सेवाएं (द्वितीयक और तृतीयक गतिविधियाँ)
सामाजिक संबंध घनिष्ठ, समुदाय आधारित औपचारिक, व्यक्तिगत
सुविधाएं शिक्षा, स्वास्थ्य और परिवहन की कम सुविधाएँ शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और मनोरंजन की बेहतर सुविधाएँ

ग्रामीण-नगरीय संघटन का महत्व :-

ग्रामीण-नगरीय संघटन का अध्ययन कई कारणों से महत्वपूर्ण है:

विकास योजना :- यह सरकार को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार विकास योजनाएँ बनाने में मदद करता है।

संसाधन वितरण :- जनसंख्या के वितरण के आधार पर शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाओं के लिए संसाधनों का उचित आवंटन किया जा सकता है।

सामाजिक अध्ययन :- यह ग्रामीण और शहरी जीवनशैली, संस्कृति और सामाजिक संरचना में अंतर को समझने में सहायक होता है।

प्रवास की समझ :- यह प्रवास के कारणों और परिणामों को समझने में मदद करता है, जिससे पलायन को रोकने या प्रबंधित करने की नीतियां बनाई जा सकती हैं।

व्यावसायिक संरचना (Occupational Structure)

व्यावसायिक संरचना का अर्थ है किसी देश की कुल कार्यशील जनसंख्या का विभिन्न आर्थिक गतिविधियों में वितरण। यह किसी भी देश के आर्थिक विकास के स्तर को दर्शाने वाला एक महत्वपूर्ण सूचक है।

आर्थिक गतिविधियों के प्रमुख क्षेत्र

कार्यशील जनसंख्या को तीन मुख्य क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाता है:

प्राथमिक क्षेत्र (Primary Sector):- इस क्षेत्र में वे सभी गतिविधियाँ शामिल होती हैं जो सीधे प्रकृति से जुड़ी होती हैं।

उदाहरण: कृषि, पशुपालन, मछली पकड़ना, वानिकी, खनन और उत्खनन।

विकासशील देशों में इस क्षेत्र में सबसे अधिक लोग कार्यरत होते हैं।

द्वितीयक क्षेत्र (Secondary Sector): इस क्षेत्र में कच्चे माल को परिष्कृत उत्पादों में परिवर्तित किया जाता है।

उदाहरण: विनिर्माण उद्योग, निर्माण कार्य, ऊर्जा उत्पादन, और हस्तशिल्प।

यह क्षेत्र औद्योगीकरण और आर्थिक प्रगति का संकेत है।

तृतीयक क्षेत्र (Tertiary Sector):- इस क्षेत्र में सभी प्रकार की सेवाएँ प्रदान की जाती हैं।

उदाहरण: परिवहन, संचार, बैंकिंग, बीमा, व्यापार, स्वास्थ्य और शिक्षा।

विकसित देशों में अधिकांश जनसंख्या इसी क्षेत्र में कार्यरत होती है।

व्यावसायिक संरचना का महत्व

व्यावसायिक संरचना का अध्ययन कई कारणों से महत्वपूर्ण है:

आर्थिक विकास का सूचक : किसी देश की व्यावसायिक संरचना उसके आर्थिक विकास के स्तर को दर्शाती है। यदि अधिकांश जनसंख्या प्राथमिक गतिविधियों में लगी है, तो देश को अविकसित माना जाता है। वहीं, द्वितीयक और तृतीयक क्षेत्रों में अधिक जनसंख्या का संलग्न होना देश के विकसित होने का संकेत है।

योजना और नीति निर्माण : सरकारें व्यावसायिक संरचना के आधार पर रोजगार नीतियां, कौशल विकास कार्यक्रम और आर्थिक योजनाएं बनाती हैं।

रोजगार के अवसर: यह जानकारी यह समझने में मदद करती है कि किस क्षेत्र में रोजगार के अवसर अधिक हैं और किसमें कम।

 

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