पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन

12th Biology Sexual Reproduction in Flowering Plants || पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन

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पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन (Sexual Reproduction in Flowering Plants)

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फूल की संरचना (Structure of a Flower) :- 

पुष्प की संरचना (Structure of a Flower) :- एक विशिष्ट पुष्प (फूल) में मुख्य रूप से चार चक्र (whorls) होते हैं, जो पुष्पासन (thalamus) पर लगे होते हैं। ये सभी भाग मिलकर पौधे के लैंगिक जनन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बाह्यदलपुंज (Calyx)

दलपुंज (Corolla)

पुमंग (Androecium)

जायांग (Gynoecium)

बाह्यदलपुंज (Calyx) :-

यह पुष्प का सबसे बाहरी चक्र है।

यह छोटी, हरी पत्तियों जैसी संरचनाओं से बना होता है जिन्हें बाह्यदल (sepals) कहते हैं।

कार्य: इसका मुख्य कार्य कली अवस्था में फूल के आंतरिक अंगों की सुरक्षा करना है।

दलपुंज (Corolla) :-

यह बाह्यदलपुंज के अंदर का चक्र है।

यह रंगीन पत्तियों जैसी संरचनाओं से बना होता है जिन्हें दल (petals) कहते हैं।

कार्य: इसका मुख्य कार्य परागण (pollination) के लिए कीटों को आकर्षित करना है।

पुमंग (Androecium)

यह पुष्प का नर जनन अंग है।

यह पुंकेसर (stamen) नामक इकाइयों से बना होता है।

 प्रत्येक पुंकेसर के दो मुख्य भाग होते हैं:

परागकोष (Anther):- एक थैली जैसी संरचना जिसमें परागकण (pollen grains)

बनते हैं। ये परागकण ही नर युग्मक (male gametes) होते हैं।

पुतंतु (Filament):- एक डंठल जैसी संरचना जो परागकोष को पुष्पासन से जोड़ती है।

जायांग (Gynoecium) :- 

यह पुष्प का मादा जनन अंग है और सबसे भीतरी चक्र है।

यह स्त्रीकेसर (pistil) या अंडप (carpel) से बना होता है।

प्रत्येक स्त्रीकेसर के तीन मुख्य भाग होते हैं:

अंडाशय (Ovary): निचला, फूला हुआ भाग जिसमें बीजांड (ovules) होते हैं। बीजांड के अंदर मादा युग्मक (अंड कोशिका) बनती है।

वर्तिका (Style): एक लंबी, पतली नली जो अंडाशय के ऊपर होती है।

वर्तिकाग्र (Stigma): वर्तिका के सिरे पर स्थित चिपचिपा भाग जो परागकणों को ग्रहण करता है।

अनावश्यक भाग (Accessory Parts): बाह्यदलपुंज और दलपुंज सीधे तौर पर जनन में भाग नहीं लेते, इसलिए इन्हें अनावश्यक चक्र कहते हैं।

आवश्यक भाग (Essential Parts): पुमंग और जायांग सीधे तौर पर जनन में भाग लेते हैं, इसलिए इन्हें आवश्यक चक्र कहते हैं।

परागकण का निर्माण 

परागकणों का निर्माण पुष्प के नर भाग, पुंकेसर (stamen) के परागकोश (anther) में होता है। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसे लघुबीजाणुजनन (microsporogenesis) कहते हैं।

इस प्रक्रिया के मुख्य चरण इस प्रकार हैं:

लघुबीजाणु मातृ कोशिका का निर्माण: परागकोश के अंदर कुछ विशिष्ट कोशिकाएँ होती हैं जिन्हें लघुबीजाणु मातृ कोशिकाएँ (microspore mother cells) कहा जाता है। ये कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं, यानी इनमें क्रोमोसोम के दो सेट होते हैं।

अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis): प्रत्येक लघुबीजाणु मातृ कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होता है। यह एक विशेष प्रकार का कोशिका विभाजन है जो क्रोमोसोम की संख्या को आधा कर देता है। इस विभाजन के परिणामस्वरूप, एक द्विगुणित कोशिका से चार अगुणित (haploid) कोशिकाएँ बनती हैं जिन्हें लघुबीजाणु (microspores) कहते हैं। ये लघुबीजाणु एक साथ जुड़े होते हैं और लघुबीजाणु चतुष्टय (microspore tetrad) बनाते हैं।

परागकण का विकास: जब परागकोश परिपक्व होता है, तो ये चतुष्टय अलग हो जाते हैं और प्रत्येक लघुबीजाणु एक परागकण में विकसित होता है। इस प्रक्रिया में, प्रत्येक परागकण एक असममित माइटोटिक विभाजन (asymmetric mitotic division) से गुजरता है जिससे दो कोशिकाएँ बनती हैं:

एक बड़ी वर्धी कोशिका (vegetative cell), जो पराग नलिका का निर्माण करती है।

एक छोटी जनन कोशिका (generative cell), जो बाद में विभाजित होकर दो नर युग्मक (male gametes) बनाती है।

इस तरह, एक पूर्ण विकसित परागकण के अंदर दो नर युग्मक और एक वर्धी कोशिका होती है, जो निषेचन (fertilization) के लिए तैयार होती है।

परागकण की संरचना

परागकण (pollen grain) एक सूक्ष्म, अगुणित (haploid) संरचना है जो पौधे के नर युग्मक का प्रतिनिधित्व करती है। यह सामान्यतः गोलाकार या अंडाकार होता है और इसकी संरचना में दो मुख्य परतें होती हैं।

एक परिपक्व परागकण को दोहरी दीवार से घिरा हुआ देखा जा सकता है, जिसके भीतर कोशिका द्रव्य और एक केंद्रक होता है।

बाह्यचोल (Exine): यह परागकण की सबसे बाहरी, मोटी और कठोर परत होती है। यह स्पोरोपोलेनिन (sporopollenin) नामक एक अत्यंत प्रतिरोधी कार्बनिक पदार्थ से बनी होती है। स्पोरोपोलेनिन परागकण को उच्च तापमान, अम्ल और क्षार जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाता है। इसी वजह से परागकण जीवाश्म के रूप में लंबे समय तक सुरक्षित रह पाते हैं। बाह्यचोल पर कुछ छिद्र होते हैं, जिन्हें जनन छिद्र (germ pores) कहते हैं, जहाँ स्पोरोपोलेनिन अनुपस्थित होता है। पराग नली (pollen tube) इन्हीं छिद्रों से होकर बाहर निकलती है।

अंतःचोल (Intine): यह बाह्यचोल के अंदर की ओर स्थित एक पतली और कोमल परत होती है। यह पेक्टिन (pectin) और सेलुलोज (cellulose) से बनी होती है। यह परत परागकण के आंतरिक भाग को सुरक्षा प्रदान करती है।

परागकण के आंतरिक भाग

कोशिका द्रव्य (Cytoplasm): परागकण के भीतर कोशिका द्रव्य भरा होता है जिसमें

एक अगुणित केंद्रक होता है।

केन्द्रक (Nucleus): परागकण के अंदर का केन्द्रक समसूत्री विभाजन (mitosis) द्वारा

 दो कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है:

वर्धी कोशिका (Vegetative Cell): यह बड़ी कोशिका होती है जिसमें प्रचुर मात्रा में भोजन संग्रहित होता है। इसका काम पराग नली का निर्माण करना और उसे पोषण देना है।

जनन कोशिका (Generative Cell): यह छोटी कोशिका होती है जो वर्धी कोशिका के कोशिका द्रव्य में तैरती रहती है। यह आगे चलकर दो नर युग्मक (male gametes) बनाती है।

पुष्पी पादपों में मादा युग्मक का विकास (Development of Female Gamete):

पुष्पी पादपों में मादा युग्मक के विकास को गुरुबीजाणुजनन (megasporogenesis) और गुरुबीजाणु विकास (megagametogenesis) नामक प्रक्रियाओं में समझा जा सकता है, जो अंडाशय के भीतर बीजांड में होते हैं।

अंडाशय की संरचना (structure of the ovary )

पुष्पी पादपों का अंडाशय, पुष्प के स्त्रीकेसर (pistil) का आधार भाग होता है। इसके

 भीतर एक या एक से अधिक बीजांड (ovules) होते हैं। प्रत्येक बीजांड एक छोटे वृंत

 जरायु (placenta) से जुड़ा होता है। बीजांड के अंदर का मुख्य भाग बीजांडकाय (nucellus)

कहलाता है, जो अध्यावरणों (integuments) से घिरा होता है। अध्यावरणों में एक छोटा

 छिद्र होता है जिसे बीजांडद्वार (micropyle) कहते हैं।

भ्रूणकोष का निर्माण (formation of embryo sac) :-

भ्रूणकोष का निर्माण दो मुख्य चरणों में होता है:

गुरुबीजाणुजनन (Megasporogenesis): यह वह प्रक्रिया है जिसमें बीजांडकाय में मौजूद एक द्विगुणित (2n) गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (megaspore mother cell) अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) द्वारा चार अगुणित (n) गुरुबीजाणु (megaspores) बनाती है। इनमें से तीन गुरुबीजाणु अपह्रासित (degenerate) हो जाते हैं, जबकि एक सक्रिय (functional) रहता है।

गुरुबीजाणु विकास (Megagametogenesis): यह सक्रिय गुरुबीजाणु, जो अब मादा युग्मकोद्भिद (female gametophyte) या भ्रूणकोष के रूप में विकसित होगा, समसूत्री विभाजन (mitosis) से गुजरता है। इस प्रक्रिया में, सक्रिय गुरुबीजाणु के केंद्रक में तीन क्रमिक समसूत्री विभाजन होते हैं, जिससे आठ केंद्रकों का निर्माण होता है।

भ्रूणकोष की संरचना

आठ केंद्रक बनने के बाद, ये कोशिकाएँ व्यवस्थित होती हैं और एक परिपक्व भ्रूणकोष (embryo sac) का निर्माण होता है। भ्रूणकोष एक 7-कोशिकीय और 8-केंद्रकीय संरचना है, जिसमें निम्नलिखित कोशिकाएँ होती हैं:

अंड उपकरण (Egg apparatus): यह बीजांडद्वार सिरे की ओर स्थित होता है और इसमें तीन कोशिकाएँ होती हैं:

अंड कोशिका (Egg cell): एक बड़ी अगुणित (n) कोशिका, जो मादा युग्मक का प्रतिनिधित्व करती है और निषेचन के बाद युग्मज (zygote) बनाती है।

सहायक कोशिकाएँ (Synergids): अंड कोशिका के दोनों ओर दो छोटी अगुणित (n) कोशिकाएँ, जो पराग नलिका (pollen tube) को आकर्षित करती हैं।

प्रतिध्रुवी कोशिकाएँ (Antipodal cells): ये बीजांडद्वार के विपरीत, चलाजा (chalaza) सिरे पर स्थित तीन अगुणित (n) कोशिकाएँ हैं।

ध्रुवीय केंद्रक (Polar nuclei): ये भ्रूणकोष के केंद्र में स्थित दो अगुणित (n) केंद्रक हैं, जो एक बड़ी केंद्रीय कोशिका (central cell) के भीतर होते हैं। निषेचन के बाद, ये द्वितीयक केंद्रक (secondary nucleus) बनाते हैं जो भ्रूणपोष (endosperm) के निर्माण में मदद करता है।

परागण (Pollination)

परागण वह प्रक्रिया है जिसमें परागकण (pollen grains) नर भाग (परागकोष) से मादा भाग (वर्तिकाग्र) तक स्थानांतरित होते हैं। यह पुष्पी पादपों में निषेचन और प्रजनन के लिए एक आवश्यक कदम है।

परागण के प्रकार

परागण को मुख्य रूप से दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

स्वपरागण (Self-Pollination): इस प्रकार के परागण में, एक ही पुष्प के परागकोष से परागकण

उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर, या उसी पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं।

फायदे: इसमें बाहरी कारकों पर निर्भरता नहीं होती और यह अनुवांशिक स्थिरता बनाए रखता है।

नुकसान: अनुवांशिक विविधता कम होती है, जिससे पादप में अनुकूलन क्षमता कम हो सकती है।

पर-परागण (Cross-Pollination): इस परागण में, एक पादप के पुष्प के परागकण दूसरे पादप

 के पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं।

फायदे: यह अनुवांशिक विविधता को बढ़ाता है, जिससे पादप में नए गुणों का विकास होता है और

वे बदलते वातावरण के प्रति अधिक अनुकूलित होते हैं।

नुकसान: इसमें परागण के लिए बाहरी कारकों (जैसे कीड़े, हवा) की आवश्यकता होती है, जो हमेशा उपलब्ध नहीं हो सकते।

परागण के कारक

पर-परागण विभिन्न माध्यमों से होता है, जिन्हें परागण कारक (pollinating agents) कहते हैं।

वायु द्वारा परागण (Anemophily):

अनुकूलन: इन पादपों के पुष्प छोटे और आकर्षक नहीं होते हैं। परागकण हल्के, चिकने और बड़ी मात्रा में उत्पन्न होते हैं ताकि वे हवा में आसानी से उड़ सकें। वर्तिकाग्र बड़े और पंखदार होते हैं ताकि हवा में तैरते परागकणों को पकड़ सकें।उदाहरण: घास, मक्का, चीड़।

जल द्वारा परागण (Hydrophily):

अनुकूलन: यह परागण केवल जलीय पादपों में होता है। परागकणों को जल के प्रवाह से बचाने के लिए उन पर एक श्लेष्मी आवरण (mucilaginous sheath) होता है। पुष्प छोटे और रंगहीन होते हैं।उदाहरण: वैलिसनेरिया, हाइड्रिला।

कीड़ों द्वारा परागण (Entomophily):

अनुकूलन: ये पुष्प बड़े, रंगीन, सुगंधित और मकरंद (nectar) युक्त होते हैं ताकि कीड़ों को आकर्षित कर सकें। परागकणों पर एक चिपचिपी परत होती है जो कीड़ों के शरीर से चिपक जाती है।उदाहरण: गुलाब, सूरजमुखी, ऑर्किड।

जानवरों द्वारा परागण (Zoophily):

अनुकूलन: यह विभिन्न जानवरों जैसे पक्षियों (ornithophily) और चमगादड़ों (chiropterophily) द्वारा होता है। पुष्प बड़े, मजबूत और मकरंद से भरपूर होते हैं।उदाहरण: सेमल का पेड़, केले का पेड़।

पुष्पी पादपों में निषेचन (Fertilizations) :- 

निषेचन पुष्पी पादपों में वह प्रक्रिया है जिसमें नर और मादा युग्मक (gametes) मिलकर युग्मनज (zygote) बनाते हैं। यह प्रक्रिया पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण से शुरू होती है और द्विनिषेचन के साथ समाप्त होती है, जो पुष्पी पादपों की एक अनूठी विशेषता है।

पराग-स्त्रीकेसर संकर्षण (Pollen-Pistil Interaction)

यह एक गतिशील प्रक्रिया है जो परागकण के वर्तिकाग्र पर पहुंचने से शुरू होकर बीजांड में उसके प्रवेश तक चलती है।

परागकण की पहचान: जब परागकण वर्तिकाग्र पर पहुँचता है, तो वर्तिकाग्र की सतह पर मौजूद कुछ रासायनिक पदार्थ यह निर्धारित करते हैं कि परागकण उसी प्रजाति का है या नहीं। यदि यह संगत (compatible) होता है, तो वर्तिकाग्र उसे स्वीकार करता है।

परागनलिका का विकास: स्वीकार किए जाने के बाद, परागकण अंकुरित होता है और एक परागनलिका (pollen tube) विकसित करता है। यह परागनलिका वर्तिका (style) से होते हुए अंडाशय में प्रवेश करती है। परागनलिका अपने साथ दो नर युग्मकों को लेकर जाती है।

बीजांड में प्रवेश: परागनलिका बीजांडद्वार (micropyle) से होते हुए बीजांड में प्रवेश करती है, और फिर भ्रूणकोष (embryo sac) में पहुँचती है।

भ्रूणकोष में पहुँचने के बाद, परागनलिका फट जाती है और दोनों नर युग्मकों को मुक्त करती है। यहाँ दो अलग-अलग संलयन होते हैं, इसलिए इसे द्विनिषेचन कहते हैं।

द्विनिषेचन (Double Fertilisation)

द्विनिषेचन पुष्पी पादपों का एक विशिष्ट गुण है जिसमें दो निषेचन घटनाएँ एक साथ होती हैं:

युग्मक संलयन (Syngamy): परागनलिका से निकलने वाले दो नर युग्मकों में से एक नर युग्मक अंड कोशिका (egg cell) के साथ संलयित (fuse) होता है। इस प्रक्रिया को युग्मक संलयन कहते हैं।

इसका परिणाम द्विगुणित (2n) युग्मनज (zygote) होता है, जो बाद में विकसित होकर भ्रूण (embryo) बनाता है।

त्रिसंलयन (Triple Fusion): दूसरा नर युग्मक केंद्रीय कोशिका (central cell) में मौजूद दो ध्रुवीय केंद्रकों (polar nuclei) के साथ संलयित होता है।

चूंकि इसमें तीन अगुणित (n) केंद्रकों का संलयन होता है (एक नर युग्मक और दो ध्रुवीय केंद्रक), इसे त्रिसंलयन कहते हैं।

इसका परिणाम त्रिगुणित (3n) प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (primary endosperm nucleus) होता है, जो विकसित होकर भ्रूणपोष (endosperm) बनाता है। भ्रूणपोष विकासशील भ्रूण को पोषण प्रदान करता है।

 पुष्पी पादपों में निषेचन-पश्च घटनाएँ (Post-fertilisation Events)

पुष्पी पादपों में निषेचन के बाद कई महत्वपूर्ण परिवर्तन होते हैं, जिन्हें निषेचन-पश्च घटनाएँ कहते हैं।

  1. भ्रूण का विकास (Embryogenesis)
  2. भ्रूणपोष का विकास (Endosperm Development)
  3. बीजांड का बीज में परिवर्तन (Transformation of Ovule into Seed)
  4. अंडाशय का फल में परिवर्तन (Transformation of Ovary into Fruit)
  1. भ्रूण का विकास (Embryogenesis)

पुष्पी पादपों में भ्रूण का विकास (Embryogenesis) वह प्रक्रिया है जिसमें निषेचन के बाद युग्मनज (zygote) एक पूर्ण विकसित भ्रूण (embryo) में बदलता है। यह निषेचन-पश्च घटनाओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

भ्रूण के विकास के चरण

युग्मनज से प्रारंभिक भ्रूण का निर्माण: निषेचन के तुरंत बाद, द्विगुणित (2n) युग्मनज कुछ समसूत्री विभाजनों से गुजरता है। यह एक आधार कोशिका (basal cell) और एक शीर्षस्थ कोशिका (apical cell) में विभाजित होता है।

प्राक्भ्रूण (Proembryo) का निर्माण: शीर्षस्थ कोशिका कई विभाजनों से एक गोलाकार संरचना बनाती है, जिसे प्राक्भ्रूण कहते हैं। आधार कोशिका विभाजित होकर निलंबक (suspensor) बनाती है, जो भ्रूण को भ्रूणपोष (endosperm) से जोड़ने और पोषण प्रदान करने में मदद करता है।

हृदय-आकार का भ्रूण: प्राक्भ्रूण धीरे-धीरे एक हृदय-आकार (heart-shaped) के भ्रूण में विकसित होता है। इस अवस्था में, बीजपत्र (cotyledons) का विकास शुरू हो जाता है।

परिपक्व भ्रूण: अंत में, भ्रूण एक पूर्ण विकसित संरचना में बदल जाता है। इस परिपक्व भ्रूण में निम्नलिखित भाग होते हैं:

भ्रूण अक्ष (Embryonal Axis): यह भ्रूण का मुख्य अक्ष है।

प्रांकुर (Plumule): यह भविष्य में तने और पत्तियों को बनाता है।

मूलांकुर (Radicle): यह भविष्य में जड़ को बनाता है।

बीजपत्र (Cotyledons): ये पत्तियों जैसी संरचनाएँ हैं जो भ्रूणपोष से पोषण

अवशोषित करती हैं या स्वयं भोजन को संग्रहीत करती हैं। एकबीजपत्री पौधों

में एक बीजपत्र होता है, जबकि द्विबीजपत्री पौधों में दो बीजपत्र होते हैं।

भ्रूण का विकास तब तक जारी रहता है जब तक कि बीज परिपक्व नहीं हो जाता। एक बार बीज के अंदर भ्रूण पूरी तरह से विकसित हो जाता है, तो वह अंकुरण (germination) के लिए तैयार हो जाता है।

पुष्पी पादपों में भ्रूणपोष (Endosperm) का विकास निषेचन के बाद होता है और यह विकासशील भ्रूण के लिए पोषण का महत्वपूर्ण स्रोत है। यह द्विनिषेचन (double fertilisation) प्रक्रिया के दौरान हुए त्रिसंलयन (triple fusion) का परिणाम है।

भ्रूणपोष के कार्य

पोषण प्रदान करना: भ्रूणपोष का सबसे महत्वपूर्ण कार्य विकासशील भ्रूण को पोषक तत्व  प्रदान करना है। इसमें कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन और लिपिड जैसे पोषक तत्व संग्रहित होते हैं।

बीजपत्रों को सहारा देना: कुछ पादपों में, भ्रूणपोष पूरी तरह से भ्रूण द्वारा अवशोषित हो जाता है (जैसे मटर), जबकि अन्य में यह परिपक्व बीज में भी मौजूद रहता है (जैसे अरंडी)।

बीजांड का बीज में परिवर्तन (Transformation of Ovule into Seed)

निषेचन के बाद, बीजांड (ovule) पूरी तरह से बीज (seed) में विकसित हो जाता है। इस परिवर्तन के मुख्य चरण और भाग निम्नलिखित हैं:

युग्मनज का भ्रूण में विकास: बीजांड के अंदर मौजूद युग्मनज (zygote) बार-बार विभाजित होकर भ्रूण (embryo) बनाता है, जो नए पौधे को जन्म देगा।

अध्यावरण का बीज आवरण में परिवर्तन: बीजांड के अध्यावरण

(integuments) सख्त  और मोटे होकर बीज आवरण (seed coat)

बनाते हैं। यह आवरण बीज को बाहरी वातावरण से सुरक्षा प्रदान करता है।

भ्रूणपोष का विकास: प्राथमिक भ्रूणपोष केंद्रक (primary endosperm nucleus)

 विकसित होकर भ्रूणपोष (endosperm) बनाता है, जो भ्रूण को पोषण देता है।

बीजांडद्वार का बीजद्वार में परिवर्तन: बीजांड का छोटा छिद्र, बीजांडद्वार (micropyle), बीज के विकास के बाद भी बना रहता है और इसे बीजद्वार कहते हैं। यह अंकुरण के दौरान ऑक्सीजन और पानी के प्रवेश के लिए महत्वपूर्ण है।

इस तरह, बीजांड एक पूर्ण बीज में बदल जाता है, जिसमें भ्रूण, भ्रूणपोष, और बीज आवरण मौजूद होते हैं।

यह परिवर्तन सुनिश्चित करता है कि नए पौधे की आनुवंशिक सामग्री सुरक्षित रहे और उसे अंकुरण के लिए आवश्यक पोषक तत्व मिलें।

अंडाशय का फल में परिवर्तन (Transformation of Ovary into Fruit)

निषेचन के बाद, अंडाशय (ovary) का फल (fruit) में परिवर्तन एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है, जिसे फल का विकास कहते हैं। यह निषेचन-पश्च घटनाओं का एक हिस्सा है और पुष्पी पादपों के प्रजनन चक्र को पूरा करता है।

अंडाशय का फल में परिवर्तन के चरण

निषेचन के बाद परिवर्तन: सफल निषेचन के बाद, अंडाशय की दीवारें मोटी होने

लगती हैं और उनका विस्तार होता है। इस बीच, पुष्प के अन्य भाग जैसे पंखुड़ियाँ, बाह्यदल,

 पुंकेसर और वर्तिकाग्र आमतौर पर सूखकर गिर जाते हैं।

फल भित्ति (Pericarp) का निर्माण: अंडाशय की दीवारें विकसित होकर फल भित्ति (pericarp)

बनाती हैं। यह फल भित्ति फल का वह भाग है जिसे हम खाते हैं। फल भित्ति के तीन परतें होती हैं:

बाह्यफल भित्ति (Epicarp): यह फल की बाहरी परत होती है, जैसे सेब की त्वचा।

मध्यफल भित्ति (Mesocarp): यह फल का मांसल और रसदार मध्य भाग होता है, जैसे आम का गूदा।

अंतःफल भित्ति (Endocarp): यह फल की सबसे भीतरी परत होती है, जो बीज को घेरे रहती है, जैसे आम की गुठली का कठोर भाग।

बीजांड का बीज में परिवर्तन: अंडाशय के अंदर मौजूद बीजांड (ovules) विकसित होकर बीज (seeds) में बदल जाते हैं। फल का मुख्य उद्देश्य बीजों को सुरक्षा प्रदान करना और उनके फैलाव में मदद करना है।

विशेष प्रकार के जनन (Special Modes of Reproduction)

  1. असंगजनन (Apomixis): बिना निषेचन के बीज का बनना।
  2. बहुभ्रूणता (Polyembryony): एक बीज में एक से अधिक भ्रूण का पाया जाना।

पुष्पी पादपों में निषेचन और बीज निर्माण सामान्य प्रक्रियाएं हैं, लेकिन कुछ पादपों में इन प्रक्रियाओं से हटकर विशेष प्रकार का जनन पाया जाता है। इनमें असंगजनन और बहुभ्रूणता प्रमुख हैं।

असंगजनन (Apomixis) :- असंगजनन एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जिसमें बिना निषेचन के बीज का निर्माण होता है। इस प्रक्रिया में, लैंगिक जनन (युग्मक संलयन और अर्धसूत्री विभाजन) को छोड़ दिया जाता है। इस प्रकार उत्पन्न होने वाले बीज से जो पौधे उगते हैं, वे आनुवंशिक रूप से मातृ पौधे के समान (clones) होते हैं।

असंगजनन के कुछ मुख्य प्रकार हैं:

आवर्ती असंगजनन (Recurrent Apomixis): इसमें, भ्रूणकोष (embryo sac) का विकास एक ऐसी कोशिका से होता है जो अर्धसूत्री विभाजन से नहीं गुज़री है, और इसलिए वह द्विगुणित (2n) होती है। यह द्विगुणित अंड कोशिका बिना निषेचन के ही भ्रूण में विकसित हो जाती है।

अनिशेकबीजता (Adventive Embryony): इस प्रकार में, बीजांडकाय (nucellus) या अध्यावरण (integuments) की कुछ द्विगुणित कोशिकाएं भ्रूण में विकसित हो जाती हैं। यह नींबू और आम जैसे पौधों में आम है।

महत्व:

असंगजनन का एक बड़ा फायदा यह है कि यह संकर (hybrid) बीजों के गुणों को बनाए रखता है। यदि किसान इन असंगजनन से बने बीजों का उपयोग करते हैं, तो उन्हें हर साल नए संकर बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं होती।

बहुभ्रूणता (Polyembryony) :- बहुभ्रूणता वह स्थिति है जिसमें एक ही बीज में एक से अधिक भ्रूण विकसित हो जाते हैं। यह आमतौर पर नींबू, संतरे और आम जैसे खट्टे फलों में पाया जाता है।

बहुभ्रूणता के कारण:

विभिन्न स्रोतों से भ्रूण का बनना: यह बीजांड में कई अलग-अलग कोशिकाओं से भ्रूण बनने के कारण हो सकता है, जैसे:

एक से अधिक अंड कोशिकाओं का निषेचन।

अंड उपकरण की सहायक कोशिकाओं का भ्रूण में बदलना।

बीजांडकाय या अध्यावरण की कोशिकाओं का भ्रूण में विकसित होना।

युग्मनज का विभाजन: कभी-कभी, एक ही निषेचित युग्मनज (zygote) विभाजित होकर कई भ्रूणों को जन्म देता है।

उदाहरण:

नींबू के बीज को जब हम अंकुरित करते हैं, तो अक्सर उससे एक से अधिक पौधे निकलते हैं, जो बहुभ्रूणता का एक अच्छा उदाहरण है।

फल (Fruit) वह परिपक्व अंडाशय है जो निषेचन के बाद विकसित होता है। इसका मुख्य कार्य बीज को सुरक्षित रखना और उसके फैलाव में मदद करना है।

फल को मुख्य रूप से तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

1.सरल फल (Simple Fruit) :- ये एक फूल के एक ही अंडाशय से विकसित

होते हैं। ये सबसे सामान्य प्रकार के फल हैं। उदाहरण: आम, टमाटर, मटर।

  1. 2. पुंज फल (Aggregate Fruit) :- ये एक ही फूल के कई स्वतंत्र

 अंडाशयों से विकसित होते हैं। उदाहरण: स्ट्रॉबेरी, रसभरी।

  1. संग्रथित फल (Multiple Fruit) :- ये कई फूलों के एक समूह से विकसित होते हैं,

जो आपस में मिलकर एक एकल फल बनाते हैं। उदाहरण: अनानास, कटहल, शहतूत।

फल की संरचना

एक परिपक्व फल की दीवार को फलभित्ति (Pericarp) कहा जाता है। यह तीन परतों से मिलकर बनी होती है:

बाह्यफलभित्ति (Epicarp):- यह फल की सबसे बाहरी परत है, जिसे छिलका कहते हैं।

मध्यफलभित्ति (Mesocarp): यह मध्य परत है जो अक्सर गूदेदार और खाने योग्य होती है।

अंतःफलभित्ति (Endocarp): यह सबसे भीतरी परत है जो बीज को घेरे रहती है। आम की गुठली इसकी एक उदाहरण है।

 

 

 

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